वरीष्ठ राज्य आंदोलनकारी बब्बर गुरुंग की अंतिम यात्रा में पहुंचे वीरेंद्र पोखरियाल, बोले- अपूरणीय क्षति

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गोर्खाली भाषा को भारत के रुपए में बब्बर गुरुंग ने दिलाई थी जगह, किया था पैदल मार्चः पोखरियाल

देहरादून: उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले गोरखा समुदाय के प्रमुख नेता बब्बर गुरुंग का निधन हो गया। कांग्रेस नेता व राज्य आंदोलनकारी वीरेंद्र पोखरियाल ने उनकी अंतिम यात्रा में शामिल हो कर श्रद्धासुमन अर्पित किए। इस दौरान उन्होंने कहा कि बाबर गुरुंग का जाना अपूरणीय क्षति है। उन्होंने देश और प्रदेश के लिए जो योगदान दिए उसे भुलाया नहीं जा सकता है।

कांग्रेस नेता व राज्य आंदोलनकारी वीरेंद्र पोखरियाल ने कहा कि राज्य आदोंलन के साथ ही बब्बर गुरुंग ने भारत-पाक 1971 युद्ध में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। वह उस दौरान नायक सुबेदार थे। युद्ध के समय इन्हें गोली लगी थी। जिसमें ये घायल हो गए थे। इसके बाद इन्होंने एक और आंदोलन छेड़ा था जिसमें इन्होंने देहरादून से दिल्ली पैदल मार्च किया था। इसमें इनकी मांग थी कि भारत की कैरंसी में गोर्खाली भाषा में लिखा जाए। इनके आंदोलन से गोर्खाली भाषा को भारत के रुपए में पहचान मिली। इनका संघर्ष यहीं नहीं रुका।

उत्तराखंड राज्य आन्दोलन का दौर और 1994-95 के दिन संघर्ष और समर्पण के दौर मशाल जुलूस प्रभात फेरी, भूख हड़ताल, रैलियों, पोस्टर जन गीत, नुक्कड़ नाटक, विचार गोष्ठियों, स्मारिकाओं, कविताओं, जोशीले भाषणों, का दौर था। उन्होंने कहा कि हमेशा पृथक उत्तराखंड राज्य निर्माण के पक्ष में रहने वाले बबर गुरुंग ने राज्य आंदोलन के दौरान अनेक बार जेल यात्रा की व सबसे बड़ी भूमिका जो उन्होंने निभाई वह गोरखा समुदाय को राज्य निर्माण के पक्ष में खड़ा किया।

गौरतलब है कि वरिष्ठ राज्य आन्दोलनकारी बब्बर गुरुंग का बुधवार देर रात को देहरादून केंट के टपकेश्वर(शेरबाग) मार्ग स्थित अपने आवास पर निधन हो गया था। वह 87 वर्ष के थे। वह पिछले कुछ वर्षों से बीमारी के चलते बिस्तर पर थे। बब्बर गुरुंग का जन्म 12 जून 1937 को हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले में स्थित बकलोह कैंट में संतराम गुरुंग के घर हुआ था।

बब्बर को शिक्षा के अलावा संगीत और साहित्य में भी गहरी रुचि थी। 16 साल की उम्र में हाईस्कूल पास करने के बाद वे 30 अक्तूबर 1953 को गोरखपुर में 5/5 जीआरओ में भर्ती हो गए थे।नवंबर-1969 में उनकी शादी देहरादून के गढ़ी कैंट निवासी शकुन से हुई। सेना से सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने कुछ समय एमईएस में भी बतौर क्लर्क सेवा दी।

बब्बर अपने पीछे एक पुत्र और पुत्री का भरपूरा परिवार छोड़ गए हैं। उनका पुत्र भी सेना में सेवारत है। बब्बर गुरुंग की पत्नी शकुन गुरुंग का कैंसर की वजह से पिछले वर्ष निधन हो गया था। शकुन भी उत्तराखंड आंदोलन में अग्र पंक्ति में रहीं और गोरखा समाज की महिलाओं को राज्य आंदोलन में जोड़ने में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा।


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