देहरादून: उत्तराखण्ड बनने के बाद से ही राज्य की सैकडों मलिन बस्तियों में रहने वाले लाखों लोगों के मन में एक ही सवाल तैरता रहा है कि आखिरकार उन्हें कब मालिकाना हक मिलेगा जिसके चलते वह अपने घर के मालिक बन पायेंगे। चौबीस साल से लाखों मलिन बस्तियों में रहने वाले लोग सियासत की नाव में सवार हो रखे हैं लेकिन उन्हें अपनी मंजिल आज तक हासिल नहीं हो पाई है जिससे सवाल पनप रहे हैं कि क्या मलिन बस्तियों में रहने वाले लोग राजनीतिक दलों का वोट बैंक बनकर रह गये हैं जिसके चलते आज तक उन्हें सिर्फ यही सपने दिखाये जाते हैं कि वह मलिन बस्तियों में रहने वाले लोगों को मालिकाना हक देंगेे। चौबीस साल से उत्तराखण्ड के लाखों मलिन बस्तिवासी मालिकाना हक पाने का सपना देख रहे हैं लेकिन उनका यह सपना कोई भी सरकार पूरा करने के लिए कभी आगे नहीं बढ़ी?
अब कुछ अर्से पूर्व मुख्यमंत्री के आदेश पर मलिन बस्तियों की कैटागिरी तैयार कर उस पर लम्बा मंथन चिंतन शुरू हुआ लेकिन उसके बाद फिर मलिन बस्तियों को कैटागिरी के आधार पर मालिकाना हक देने के लिए सरकार एक कदम भी आगे क्यों नहीं बढ़ी यह लाखों मलिन बस्तिवासियों को एक चिंता में डाल रहा है। अब लाखों मलिन बस्तिवासियों को धाकड मुख्यमंत्री से उम्मीद है कि वह उन्हें मालिकाना हक दिलाने के लिए शासन के अफसरों को संदेश देंगे कि वह मालिकाना हक देने की रूपरेखा पर अपनी लकीर खींचे।
उत्तराखण्ड़ में होने वाले हर चुनाव के दौरान मलिन बस्तिवासियों को कुछ राजनीतिक दल यह झुनझुना पकडाने के लिए आगे बढ निकलते हैं कि अगर वह सत्ता में आये तो वह सबसे पहले मलिन बस्तिवासियों को मालिकाना हक देने के लिए आगे आयेंगे। अब उत्तराखण्ड के अन्दर पंचायत व निकाय चुनाव की रणभूमि सजी हुई है और एक बार फिर मलिन बस्तिवासियों को हसीन सपने दिखाये जा रहे हैं कि अगर इन चुनाव में उनकी जीत हुई तो उन्हें मालिकाना हक दिलाने के लिए वह आगे खडे रहेंगे। मलिन बस्तिवासियों को मालिकाना हक दिलाने का भोपू तो राज्य बनने के बाद से ही सुनने को मिलता आ रहा है लेकिन सत्ता मे आने के बाद किसी भी सरकार ने लाखों मलिन बस्तिवासियों को मालिकाना हक देने के लिए वो जज्बा नहीं दिखाया जो जज्बा वह चुनाव से पूर्व मलिन बस्तिवासियों के सामने दिखाते रहे थे।
कांग्रेस की सरकार में मलिन बस्तियों को चिन्हित करने और उसका सर्वे राज्य स्तर पर कराने के लिए कमेटी का गठन हुआ और यह सर्वे अंतिम पडाव पर आया लेकिन उसके बाद इस सर्वे की रिपोर्ट पर कोई फैसला होता हुआ दिखाई नहीं पड़ा जिससे फिर बहस चली कि आखिरकार जो मलिन बस्तियां ए,बी,सी कैटागिरी की हैं और उसके आसपास कहीं पर भी कोई नदी नहीं है वहां की मलिन बस्तियों में रहने वाले लोगों को अगर सरकार मालिकाना हक देने के लिए आगे आती तो उससे वहां रहने वाले लोगों के मन में सरकार की मंशा को लेकर एक विश्वास बनता कि सरकार उनके साथ खडी है?
वहीं अब राज्यवासियों को उत्तराखण्ड के धाकड बन चुके पुष्कर सिंह धामी से बडी उम्मीद है और यह उम्मीद इसलिए भी बढ चुकी है कि मुख्यमंत्री ने मलिन बस्तियों को कैटागिरी मे बांटकर उसका सर्वे करने के आदेश दिये थे जिससे कि मलिन बस्तिवासियों को मालिकाना हक मिल सके। मुख्यमंत्री पर आवाम इसलिए भी विश्वास कर रहा है क्योंकि उन्होंने अपने कार्यकाल में आवाम से जो भी वायदा किया उसे उन्होंने पूरा किया है इससे अब देखने वाली बात होगी कि लाखो मलिन बस्तिवासी चौबीस सालों से मालिकाना हक को लेकर जो सपना देख रहे हैं उस सपने को मुख्यमंत्री कब तक पूरा करेंगे?