उत्तराखंड में निर्वाचन आयोग का 75 प्रतिशत मतदान कराने का जज्बा हुआ धड़ाम

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आयोग की मुहिम पर हो रही सवालों की बौछार, क्यों हुआ एजेंडा टॉय-टॉय फिस्स ?

देहरादून। उत्तराखण्ड मे लोकसभा की पांचो सीटो पर मतदान प्रतिशत 75 प्रतिशत कराने को लेकर निर्वाचन आयोग ने एक मुहिम के तहत अपने विजन को मीडिया के सहारे आवाम के सामने रखने का जो एजेंडा तैयार किया था वह एजेंडा चुनाव मे टॉय-टॉय फिस्स होकर रह गया? 2019 मे हुये लोकसभा चुनाव से काफी कम प्रतिशत मतदान होने से निर्वाचन आयोग की मुहिम पर अब राज्य के अन्दर सवालों की बौछार हो रही है और सोशल मीडिया पर चुनाव आयोग को कटघरे मे खडा किया जा रहा है कि मतदान को लेकर कागजी और मीडिया युद्ध लड रहा चुनाव आयोग आवाम को धरो से पोलिंग बूथो पर लाने मे आखिर क्यों फिस्ड्डी हो गया?

लोकसभा चुनाव मे 75 प्रतिशत मतदान कराने का जो जज्बा चुनाव आयोग ने दिखाया था वह धरातल पर तो धड़ाम हो गया और उसके चलते यह सवाल खडा हुआ कि निर्वाचन आयोग अगर आवाम के बीच मतदान को लेकर अपनी बात रखता तो शायद मतदान प्रतिशत बढ़ सकता था लेकिन मीडिया और सोशल मीडिया के सहारे मतदान प्रतिशत बढ़ाने के जिस एजेंडे पर निर्वाचन आयोग आगे बढ़ा वह परवान नहीं चढ़ पाया?
उल्लेखनीय है कि उत्तराखण्ड मे मतदान अधिक से अधिक संख्या मे हो इसके लिए निर्वाचन आयोग ने मीडिया और सोशल मीडिया का सहारा लिया और मतदान प्रतिशत बढाने के लिए अपने विजन को भी आगे रखा लेकिन कहीं न कहीं आवाम को निर्वाचन आयोग का यह विजन रास नहीं आया और पिछली बार से भी कम मतदान होने से निर्वाचन आयोग पर सवालों की बौछार हो रही है? गौरतलब है कि आयोग ने मतदान प्रतिशत 75 प्रतिशत तक कराने के दावे किये थे।

सवाल यह उठ रहा है कि क्या घर-घर पर्चियां बांटने वाले बीएलओ ने किसी परिवार से यह पूछने की जरूरत समझी कि उनके परिवार मे कोई सदस्य ऐसा तो नहीं है जिनकी पर्ची न मिली हो? कैंट क्षेत्र मे रहने वाले एक परिवार ने बताया कि उनके घर मे पांच सदस्य हैं और जब बीएलओ उन्हे पर्ची देने के लिए आया तो उसमे चार लोगों की ही पर्ची दी गई और परिवार का एक सदस्य जो कि युवा है उसकी पर्ची दी ही नहीं गई और जब बीएलओ से इस बारे मे जानकारी ली गई तो उनका कहना था कि अभी वह इस मामले मे कुछ नहीं कर सकते? ऐसे मे समझा जा सकता है कि काफी परिवार ऐसे हो सकते हैं जिनमे परिवार के कुछ सदस्यों की पर्चियां भी उन्हें न मिली हों?

इस बार निर्वाचन आयोग जिस तरह से मतदान प्रतिशत 75 प्रतिशत तक कराने मे अपने लक्ष्य मे फिस्ड्डी हो गया वहीं सारी मशीनरी भी मतदाताओं को घरों से पोलिंग बूथ तक ले जाने मे जिस तरह से फेल साबित हुई वह कई सवालों को जन्म दे गया। पौडी व टिहरी लोकसभा की बारह विधानसभा के चौदह हजार से अधिक मतदाताओं ने मतदान का बहिष्कार किया?

गौरतलब है कि करीब बीस हजार पांच सौ से अधिक जनसंख्या लम्बे समय से सड़क, पुल, डामरीकरण की मांग को लेकर आंदोलित है। इधर निर्वाचन आयोग का भी मतदान जागरूकता कार्यक्रम मुख्य तौर पर शहरी इलाको तक ही सीमित रहा? मीडिया व जमीनी स्तर मे व्यापक प्रचार-प्रसार की भारी कमी देखी गई। उत्तराखण्ड मे इस बार मतदान प्रतिशत 2019 के मुकाबले काफी गिरा है। राजनीतिक दलों के अलावा सरकारी अमले के लिए पर्वतीय राज्य वोटर की उदासीनता एक गंभीर खतरे की ओर भी इशारा कर रही है?


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