उत्तराखंड में 22 सालों में 1055 लोगों को वन्यजीव बना चुके है अपना निवाला, क्या करता है थका-सड़ा सिस्टम?
सिर्फ भिलंगाना ब्लाक के हिंदाव पट्टी में 3 माह में तीन बच्चियों को बनाया अपना निवाला
मनमोहन सिंह/टिहरी- जिगर के टुकड़ों की लाश को उठाना कितना भारी होता है। इस दर्द को इनके मां-बाप के अलावा और कोई नहीं समझ सकता। टिहरी में आदमखोर गुलदार का आतंक जारी है। आज फिर भिलंगना ब्लॉक महेर गांव तल्ला मे आदमखोर गुलदार ने एक और 13 वर्षीय बच्ची को अपना निवाला बनाया है। जिससे परिवार में कोहराम मच गया है तो वहीं ग्रामीणों में वन विभाग के लिए जहां आक्रोश है, गुलदार की दहशत भी बनी हुई है। जबकि प्रशासन द्वारा गुलदार को मारने के आदेश जारी हो चुके है। उसके बाद भी गुलदार को पकड़ा नहीं जा सका है।
मिली जानकारी के अनुसार विकासखंड भिलंगाना के महेर गांव तल्ला ग्राम पंचायत कोट पट्टी हिंदाव में 13 वर्षीय साक्षी पुत्री विक्रम सिंह कैंतुरा महेर गांव तल्ला ग्राम पंचायत कोट हिंदाव मे आज 5 बजे दिन में ही आदमखोर गुलदार ने एक और बच्ची को अपना निवाला बनाया है। जिससे हिंदाव पट्टी में आदमखोर गुलदार के कारण दहशत का माहौल बना हुआ है। वहीं ग्रामीणों में वन विभाग के खिलाफ आक्रोश व्याप्त बना हुआ है। ग्रामीणों ने आदमखोर गुलदार को मारने की मांग की है। प्रधान द्वारा वन विभाग पर सवाल खड़े किए है कि आखिर कब तक हम अपनों बच्चों की बलि देते रहेंगे? वन विभाग क्या कर रहा है?
गौरतलब है कि इस क्षेत्र में आदमखोर गुलदार की यह तीसरी घटना है। इससे पहले गुलदार 30 सितंबर पूर्वल गांव में 3 वर्षीय बच्चे को अपना निवाला बन चुका है। तो वहीं जुलाई माह में भौंड़ गांव में 9 वर्षीय बच्ची का भी शिकार कर चुका है। पर्वतीय क्षेत्र में गुलदार सबसे बड़ी चुनौती बन चुके हैं। इसलिए कभी आंगन में खेल रहे बच्चे, खेत में काम कर महिला और घास लेकर घर को लौट रही बुजुर्ग इनका निवाला बन रही है।
वन विभाग के संवेदनहीन बड़े अधिकारियों और झूठे वादे करने वाले थके-सड़े सिस्टम से तो तिनके भर की उम्मीद नहीं है कि उन्हें इन परिवारों की असहनीय पीड़ा से कोई वास्ता भी होगा। और ये सिर्फ कहने की बात नहीं है बल्कि आंकड़े इसे प्रमाणित भी करते हैं। रिपोर्ट की माने तो राज्य गठन से लेकर 2022 तक उत्तराखंड में 1055 लोगों की वन्यजीवों के हमले में मौत हो चुकी है। इसके 2006 से 2022 के बीच 4375 लोग घायल हो गए। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल ये है कि हर घटना के बाद शोध, सर्वे और विशेषज्ञों के दम पर मानव-वन्यजीव संघर्ष को नियंत्रित करने की बात करने वाला वन विभाग आखिर करता क्या है?