Kanwar Yatra 2024: उत्तराखंड और यूपी सरकार के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई अंतरिम रोक, मांगा जवाब

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कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बताया ऐतिहासिक, दसौनी बोली- सत्यमेव जयते

दिल्लीः उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश सरकार के कांवड़ यात्रा से जुड़े एक आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने आज सुनवाई के बाद सरकार से जवाब मांगा है। बता दें कि उत्तराखंड और यूपी सरकार के आदेश में कांवड़ यात्रा मार्ग पर स्थित भोजनालयों को मालिकों के नाम लिखने को कहा गया है। मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा था। जिसपर आज  सुनवाई हुई है। कोर्ट ने सुनवाई के बाद उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश सरकार के निर्देश पर अंतरिम रोक लगा दी। कोर्ट ने तीनों राज्यों को नोटिस जारी कर जवाब भी मांगा है। कोर्ट ने कहा कि दुकानदारों को अपना नाम बताने की जरूरत नहीं है। वे सिर्फ यह बताएं कि उनके पास कौन-से और किस प्रकार के खाद्य पदार्थ उपलब्ध हैं।

इससे पहले याचिकाकर्ताओं के वकील ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि यह चिंताजनक स्थिति है, जहां पुलिस अधिकारी समाज को बांटने का बीड़ा उठा रहे हैं। अल्पसंख्यकों की पहचान करके उनका आर्थिक बहिष्कार किया जाएगा। यूपी और उत्तराखंड के अलावा दो और राज्य इसमें शामिल हो गए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि क्या यह प्रेस स्टेटमेंट था या औपचारिक आदेश कि इन्हें प्रदर्शित किया जाना चाहिए?

‘यह कोई औपचारिक आदेश नहीं’
याचिकाकर्ताओं के वकील ने जवाब दिया कि पहले प्रेस स्टेटमेंट था और फिर लोगों में आक्रोश दिखने लगा और इस पर कहा कि यह स्वैच्छिक है, लेकिन वे इसका सख्ती से पालन कर रहे हैं। वकील ने कहा कि यह कोई औपचारिक आदेश नहीं है, बल्कि पुलिस सख्त कार्रवाई कर रही है। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि यह एक छद्म आदेश है।

‘आर्थिक स्थिति पर चोट पहुंचेगी’
याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता सीयू सिंह ने कहा कि अधिकांश लोग बहुत गरीब, सब्जी और चाय की दुकान चलाने वाले हैं और इस तरह के आर्थिक बहिष्कार के कारण उनकी आर्थिक स्थिति खराब हो जाएगी। इसका पालन न करने पर हमें बुलडोजर की कार्रवाई का सामना करना पड़ा है।

सिंघवी ने यह दलील
सुप्रीम कोर्ट ने सिंघवी से कहा कि हमें स्थिति को इस तरह से नहीं बताना चाहिए कि यह जमीनी हकीकत से ज्यादा बढ़ा-चढ़ाकर पेश की जाए। इन आदेशों में सुरक्षा और स्वच्छता के आयाम भी शामिल हैं। सिंघवी ने कहा कि कांवड़ यात्रा दशकों से होती आ रही है और मुस्लिम, ईसाई और बौद्ध समेत सभी धर्मों के लोग उनकी यात्रा में मदद करते हैं। अब आप उन्हें बाहर कर रहे हैं।

सिंघवी के तर्क पर सुप्रीम कोर्ट ने पूछा सवाल
सिंघवी ने कहा कि हिंदुओं की ओर से भी बहुत से शुद्ध शाकाहारी रेस्टोरेंट चलाए जाते हैं। इनमें मुस्लिम कर्मचारी भी काम कर सकते हैं। क्या मैं कह सकता हूं कि मैं वहां कुछ भी नहीं खाऊंगा, क्योंकि वहां का खाना किसी न किसी तरह से मुसलमानों या दलितों की ओर से बनाया या परोसा जा रहा है? निर्देश में स्वेच्छा से लिखा है, लेकिन स्वेच्छा कहां है? अगर मैं बताऊंगा तो मैं दोषी हूं और अगर नहीं बताऊंगा तो भी मैं दोषी हूं। सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि क्या कांवड़ यात्रा के श्रद्धालु (कांवरियां) भी यह उम्मीद करते हैं कि खाना किसी खास श्रेणी के मालिक द्वारा पकाया जाना चाहिए?

वहीं उत्तराखंड कांग्रेस की मुख्य प्रवक्ता गरिमा मेहरा दसौनी ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को ऐतिहासिक बताया। दसौनी ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के आज के फैसले से देश की न्याय प्रणाली के प्रति अगाध विश्वास और प्रगाढ़ हो गया , सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले को सदियों तक याद किया जाएगा।करोड़ों करोड़ हिंदुस्तानियों की भावनाओं को आहत करने वाला उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार का तुगलकी फरमान मुंह के बल गिर गया है।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बाद जिस तरह से उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी कांवड़ यात्रा मार्ग पर स्थित सभी भोजनालयों को अपने मालिकों के नाम प्रदर्शित करने का आदेश दिया था वह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण था। दसौनी ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने बता दिया कि भारत देश संविधान और कानून से चलेगा सरकारों को देश के सामाजिक ताने-बाने और समरसता के साथ खिलवाड़ का अधिकार नहीं दिया जाएगा ।
दसोनी ने कहा कि यह देश सर्वधर्म समभाव का देश है, यह देश वसुधैव कुटुंबकम का देश है, यह देश भाईचारे का देश है, इसके सामाजिक ताने-बाने के साथ छेड़खानी का प्रयास भी पाप है।
दसौनी ने कहा कि कुछ कुत्सित और संकीर्ण मानसिकता के लोगों के द्वारा देश की गंगा-जमुना तहजीब को नष्ट करने का प्रयास था,हमारे देश में ऐसी विभाजनकारी सोच का बहिष्कार होना बहुत जरूरी था।
गरिमा ने कहा कि हमारा संविधान इस बात की गारंटी हर नागरिक को देता है कि उसके साथ धर्म जाती या भाषा के आधार पर भेदभाव नहीं होगा। भारतीय जनता पार्टी की सरकारें लगातार हमारे देश की एकता और अखंडता पर चोट करने के साथ ही हमारे लोकतंत्र और संविधान को भी गहरा आघात पहुंचा रही हैं। दसौनी ने कहा कि कांवड़ यात्रा महादेव शिव शंकर को उत्तराखंड से ले जाए गए गंगाजल से स्नान के लिए होता है, लेकिन कुछ धर्म के स्वयं भू ठेकेदार भोलेनाथ के विराट स्वरूप को समझ ही नहीं पाए। क्या गरीब के पेट पर लात मारने वाले ऐसे आदेश से महादेव कभी प्रसन्न होंगे?
दसौनी ने पूछा क्या बादाम , अखरोट तथा खजूर इत्यादि पर भी लिखवा दिया जाए हिंदू या मुसलमान?
क्या फ़िरोज़ाबाद की चूड़ियों पर भी लिखा जाएगा हिंदू या मुसलमान ?
क्या बनारस की साड़ी और भदोही के क़ालीन पर भी लिखा जाएगा हिंदू या मुसलमान ?
क्या नाई , गेराज , टेलर इत्यादि के दुकान पर भी लिखना होगा हिंदू या मुसलमान ?
मटन , चिकन , कवाब और बिरयानी किससे ख़रीदे जाएंगे ?
वैसे दुकान तथा ठेले पर नाम और धर्म लिखने का शिगूफ़ा इसलिए छोड़ा गया है की सब लोग इसी में उलझ जाएं और महंगाई , बेरोज़गारी , आत्महत्या, बलात्कार , अपराध , भ्रष्टाचार , चीन का लंका , बर्बाद अर्थव्यवस्था तथा अर्थनीति , संघ और भाजपा सरकार की अयोग्यता तथा नाकामी और उनके विवाद पर सवाल तथा चर्चा बंद कर दे ।


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